Monday, November 25, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने अपने कार्यकाल के शुरुआती चार सालों में विज्ञापनों पर सालाना 78 करोड़ रुपए ख़र्च किए.
यह आँकड़ा पूर्ववर्ती शीला दीक्षित सरकार के विज्ञापन ख़र्च से कहीं अधिक है. शीला दीक्षित सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में क़रीब 19 करोड़ रुपए सालाना ख़र्च किए थे. एक आरटीआई के जवाब में यह जानकारी मिली है.
समाचार एजेंसी आईएएनएस की ओर से दाख़िल की गई आरटीआई के जवाब में पता चला है कि कि 2008 से 2012 तक शीला दीक्षित की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने 75.9 करोड़ रुपए, यानी 18.97 करोड़ रुपये सालाना विज्ञापान पर ख़र्च किए थे. 2015 से 2019 के बीच केजरीवाल सरकार 311.78 करोड़ इस मद में ख़र्च कर चुकी है.
शहरी श्रमिकों में नियमित दिहाड़ी कामगारों और वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या बढ़ गई है.
अप्रैल-जून 2018 से लेकर जनवरी-मार्च 2019 तक शहरी वर्कफ़ोर्स में इनकी हिस्सेदारी 48.3 फ़ीसदी से बढ़कर 50 फ़ीसदी हो गई है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्था (एनएसओ) की ओर से किए गए ताज़ा पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफ़एस) में यह बात सामने आई है.
यह भी पता चला है कि महिलाओं की स्थिति पुरुषों के
हॉन्ग कॉन्ग में स्थानीय चुनाव के बाद वोटों की गिनती जारी है और शुरुआती रुझान आने लगे हैं. रुझानों में लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवारों को चीन समर्थक प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले शानदार जीत मिलती दिख रही हैं. लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवार अब तक तीन चौथाई से ज़्यादा सीटें जीत चुके हैं.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट अख़बार के मुताबिक, 241 सीटों पर नतीजे आए हैं जिनमें से 201 लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों से जुड़े नेताओं को मिली हैं.
ज़िला स्तर के इन चुनावों में इस बार 29 लाख से ज़्यादा लोगों ने वोट किया. कुल मतदान 71 फीसदी रहा जो 2015 में सिर्फ़ 47 फीसदी था.
बीबीसी संवाददाता कहना है कि ये हॉन्गकॉन्ग के लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं की उम्मीद और कल्पना से भी बेहतरीन है.
मुक़ाबले बेहतर हुई है. संगठित क्षेत्र में वेतन पर काम करने वाली महिला कर्मचारियों की संख्या में 2.1 फीसदी बढ़ोतरी हुई है जबकि पुरुष कर्मचारियों की संख्या में 1.5 फीसदी.

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