Monday, September 17, 2018

महिलाओं के लिए क्यों ख़ास है जेएनयू की ये जीत

देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रविवार को छात्र संघ चुनावों के नतीजे घोषित किए गए जिसमें केंद्रीय पैनल की सभी चार सीटों पर वामपंथी दलों के उम्मीदवारों ने भारी अंतर से जीत दर्ज की.
इस चुनाव में दो छात्राओं सारिका चौधरी ने उपाध्यक्ष के पद पर और अमुथा ने ज्वॉइंट सेक्रेटरी के पद पर भारी अंतर से जीत हासिल की है.
ये पहला मौका नहीं है जब जेएनयू के चुनावों में महिला नेताओं ने अपना परचम लहराया हो.
लेकिन जीत की घोषणा के बाद जेएनयू के तमाम ढाबों से लेकर पगडंडियों से गुजरती महिलाओं से बात करें तो पता चलता है कि इस चुनाव के नतीजे इतने ख़ास क्यों हैं.
जेएनयू में पढ़ने वाली तमाम छात्राओं के लिए ये एक व्यक्तिगत जीत है क्योंकि जेएनयू बीते एक साल से लैंगिक समानता से संबंधित आंदोलनों के लिए चर्चा में रहा है.
ऐसे सभी आंदोलनों में महिला छात्र आगे बढ़कर अपने हक़ों के लिए जंग लड़ रही हैं.
इनमें जेएनयू में यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करने वाली संस्था जीएसकैश को बंद किया जाना शामिल है. जीएसकैश साल 1999 से काम कर रही थी.
जीएसकैश को हटाए जाने के बाद जेएनयू शिक्षकों से लेकर छात्राओं तक- सभी ने दिन-रात इसका विरोध किया.
ऐसे में सवाल उठता है कि वामपंथी दलों की इस धमाकेदार जीत से महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर क्या असर पड़ेगा.
जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष गीता कुमारी कहती हैं कि बीते कुछ समय से छात्राएं जेएनयू में अपना स्पेस बचाने की जंग लड़ रही थीं और ये चुनावी नतीजे इस लड़ाई में जेएनयू के छात्रों की एकजुटता का प्रतीक हैं.
गीता बताती हैं, "जेएनयू के प्रोफेसर जोहरी से लेकर प्रोफ़ेसर लामा से जुड़े मामलों में महिलाओं ने खुलकर विरोध किया. लेकिन एबीवीपी और यूनिवर्सिटी प्रशासन ने एक अलग ही कहानी गढ़ने की कोशिश की. इससे महिला छात्रों के बीच एक तरह का भाव पैदा हुआ कि प्रशासन और एबीवीपी उनको दीवारों में कैद करने की कोशिश कर रहा है और उन्होंने इस चुनाव के नतीजों से ऐसी कोशिशों को कड़ा जवाब दिया है."
बीते साल जेएनयू की छात्राओं ने प्रोफेसर अतुल जोहरी और प्रोफेसर महेंद्र पी लामा के ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोप लगाए गए थे.
जेएनयू की इंटरनल कंपलेंट कमेटी ने इन मामलों की जांच करके महेंद्र पी लामा को क्लीन चिट दे दी जिसका जेएनयू की छात्राओं ने विरोध किया.
यौन उत्पीड़न के इन मामलों के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यूनिवर्सिटी प्रशासन को परिसर में महिलाओं को सुरक्षित माहौल न देने पर लताड़ा था.
गीता बताती हैं कि इस साल स्कूल ऑफ लाइफ साइंस में पढ़ने वाली छात्राओं ने भी लेफ़्ट के समर्थन में मतदान किया है जोकि अपने आप में ख़ास है क्योंकि इस स्कूल को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का गढ़ माना जाता है.
गीता इस बदलाव को समझाते हुए कहती हैं, "प्रोफेसर जौहरी और लामा के मामले में जिन छात्राओं ने शिकायत दर्ज कराई थी उन्होंने खुद कहा था कि वे एबीवीपी का समर्थन करती थीं. इसके बावजूद एबीवीपी ने जौहरी का समर्थन किया और छात्राओं के खिलाफ़ अफवाहें उड़वाई गईं."
"इस वजह से महिलाओं में एबीवीपी के प्रति गुस्से का माहौल था और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर मतदान किया. इसका नतीजा ये हुआ कि एक को छोड़कर सभी साइंस स्कूलों में लेफ़्ट के उम्मीदवारों को जीत दिलवाई है."
हाल ही में जेएनयू की दीवारों पर कुछ पोस्टर नज़र आए थे जिसमें कथित रूप से एबीवीपी के हवाले से ये कहा गया था कि चुनाव जीतने के बाद महिलाओं के यौन शोषण को रोकने के लिए छोटे कपड़ों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा.
हालांकि, एबीपीवी के सदस्यों ने इसे वामपंथी पार्टियों का दुष्प्रचार करार दिया था.
जेएनयू की पूर्व छात्रा रहीं सुकंदा बताती हैं कि ये एक तरह से जेएनयू में पढ़ने वाली लड़कियों की जीत है.
वह बताती हैं, "जेएनयू छात्राओं के लिए ये एक बहुत बड़ी जीत है क्योंकि पिछला पूरा साल जेएनयू में एक जेंडर मूवमेंट चला है. पहली बात तो पिछले साल चुनाव के तुरंत बाद जेएनयू का जीएसकैश बंद करके इंटरनल कंपलेंट कमेटी को शुरू कर दिया गया था जिसके सदस्यों को चुनाव प्रक्रिया से नहीं चुना जाता है. इसके बाद प्रोफ़ेसर अतुल जोहरी के मामले में दो सेमेस्टर तक जेएनयू की महिलाओं ने आंदोलन किया."
सुकंदा मानती हैं कि अभी जेएनयू में महिलाओं ने आगे बढ़कर अपनी बात को चुनाव नतीजों में बदला है लेकिन अभी देश के 61 दूसरे विश्वविद्यालयों में भी यही करना है.र्ष 2015 में उन्होंने महागठबंधन की जीत में जो भी भूमिका निभाई, वह इतिहास हो चुका है, वर्तमान तो यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2019 के संसदीय चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर करने के लिए पीके की भूमिका को नई धार दे रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण के अनुसार, प्रशांत किशोर पूर्व में भाजपा और कांग्रेस के साथ काम कर चुके हैं लेकिन उनका तालमेल नीतीश कुमार के साथ ज़्यादा बैठता रहा है.
प्रशांत किशोर के जेडीयू में बतौर पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में शामिल होने को नचिकेता नारायण राजनीति में ज़मीन तलाशने की तरह देखते हैं.
उनका कहना है कि प्रशांत का जेडीयू में शामिल होना इसी बात को साबित करता है. वह जेडीयू के लिए एक रणनीतिकार के रूप में मददगार रहेंगे. साथ ही इसके जातीय संकेत भी हैं.
प्रशांत ब्राह्मण जाति के हैं, जो पहले कांग्रेस और आज भाजपा के साथ है. प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल कर नीतीश कुमार ब्राह्मण जाति के बीच अपना आधार बढ़ाना चाह रहे हैं.
अब पीके रणनीतिकार नहीं, बल्कि नेता के रूप में जेडीयू की सेवा करेंगे. उनके सामने अब यह लक्ष्य होगा कि बिहार में जेडीयू को एनडीए के कोटे में ज़्यादा से ज़्यादा सीटें कैसे मिलें और पार्टी के खाते में आईं सीटों पर सफलता कैसे मिले.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय बताते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी के लिए चुनौती है.
उसी प्रकार बिहार में नीतीश कुमार के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि वह एनडीए में शामिल होने के बाद छोटे भाई की भूमिका में हैं.
नीतीश कुमार किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहते हैं इसलिए वह ग़ैर-राजनीतिक व्यक्ति की मदद लेना चाह रहे हैं.
महागठबंधन सरकार बनने के बाद वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें अपना सलाहकार बनाया और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था. वहीं, बिहार विकास मिशन के शासी निकाय का सदस्य भी बनाया था.
तब प्रशांत के बढ़ते कद से महागठबंधन में असंतोष की चर्चाएं भी गर्म रही थीं. लेकिन किसी ने कुछ बोलने का साहस नहीं किया.

Wednesday, September 12, 2018

राहुल गांधी पर आरएसएस की मानहानि मामले में चलेगा केस

शाह ने पिछले साल इस बात की भी पूरी कोशिश की कि सोनिया गांधी के विश्वस्त अहमद पटेल गुजरात से राज्यसभा सीट न जीत पाएं क्योंकि पटेल भी आर्थिक तौर पर इसका तोड़ निकाल पाने में सक्षम थे.
शाह हिंदू-मुस्लिम मुद्दों को इस तरह उठाने में माहिर है कि जातिगत मतभेद को ख़त्म कर विरोधियों के ख़िलाफ़ एकता बनाई जा सके. 2014 चुनावों के दौरान भी एक विशेष चुनावी ट्रैकर का इस्तेमाल किया गया जिससे उत्तर प्रदेश की हर सीट का आकलन वहां के 'भावनात्मक मुद्दों' के मुताबिक़ किया गया था.
उस वक्त उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह ही थे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में आए अविश्वसनीय परिणाम ने बता दिया कि नरेंद्र मोदी की सफलता की कुंजी अमित शाह हैं.
अर्थव्यवस्था की हालत और मोदी सरकार के अधूरे वादों के मद्देनज़र अमित शाह की ऊर्जा अब विपक्ष को विभाजित रखने में जाएगी. आने वाले साल 2019 में शाह की क्षमताओं की असल परीक्षा होगी कि वे 'मोदी प्रयोग' को अगले स्तर तक पहुंचा पाते हैं या नहीं.
छोटी पार्टियों को ऐसे धमकाना और प्रबंधित करना कि विपक्षी एकता का सूचकांक वैसा ही रहे जैसा 2014 में था और जिसने भाजपा को 31 प्रतिशत वोट के साथ बहुमत दिया.
तेलंगाना में एक बस हादसे में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई है. बस कोंडागट्टू के एक मंदिर से लौट रही थी.
जगित्याल जाने के दौरान राज्य परिवहन निगम की बस एक खाई में गिर गई.
सड़क सुरक्षा प्राधिकरण के पुलिस महानिदेशक कृष्णा प्रसाद ने बताया कि बस में 86 लोग यात्र कर रहे थे. घायलों को करीमनगर और जगित्याल के सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.
बस के ड्राइवर श्रीनिवास की भी मौके पर मौत हो गई है.
राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर दुख जताया है.
मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है. सड़क परिवहन निगम ने बीबीसी को बताया कि दुर्घटना की शिकार बस अक्टूबर 2007 में खरीदी गई थी और यह करीब 14.5 लाख किलोमीटर चल चुकी थी.
पुलिस महानिदेशक ने परिवहन निगम को 14 लाख किलोमीटर से अधिक चल चुकी गाड़ियों को परिचालन से बाहर करने के निर्देश दिए हैं.
दुर्घटना की शिकार बस जगित्याल से डोंगालामारी तक चलती थी. कोंडागट्टू पर उसका पड़ाव था, जहां श्रद्धालु बस में चढ़े थे.
शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि ड्राइवर बस पर अपना नियंत्रण खो चुका था और वो खाई में जा गिरी. स्थानीय लोगों का कहना है कि बस में यात्रा कर रहे सभी लोग श्रद्धालु नहीं थे.
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक बस में क्षमता से अधिक लोग बैठे थे. बस तेज़ गति में चल रही थी और लोहे की रेलिंग से टकरा गई.
ख़बरों के मुताबिक मरने वालों में कई बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं.
सोशल मीडिया में शेयर किए गए हादसे के वीडियो में दिख रहा है कि बस बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है.
स्थानीय लोग बस की खिड़कियों से घायलों को निकालने की कोशिश करते दिख रहे हैं.
इससे पहले फरवरी 2012 में हुए एक सड़क दुर्घटना में 12 लोगों की मौत हो गई थी.
निजामाबाद से आ रही एक ट्रक कोंडागट्टू घाट रोड पर दुर्घटना की शिकार हो गई थी.
इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने सड़कों कौ चौड़ा करने की मांग की थी. उनका कहना है कि इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ.
सड़क परिवहन प्राधिकरण के अनुसार 2017 में सड़क दुर्घटनाओं में करीब  लोगों ने जान गंवाई थी. हालंकि पिछले चार सालों में सड़क दुर्घटना में होने वाले मौतों में कमी आई है.
केरल में पिछले कुछ दिनों वैसा प्रदर्शन देखने को मिल रहा है, जो अमूमन देखने को नहीं मिलता है. इस प्रदर्शन में कई नन हर दिन कुछ घंटे के लिए प्रदर्शन के लिए जमा हो रही हैं.
ये नन जालंधर के उस बिशप फ्रैंको मुलक्कल को गिरफ़्तार किए जाने की मांग कर रही हैं, जिन पर एक नन के साथ 6 मई, 2014 से 23 सितंबर, 2016 के बीच रेप करने का आरोप है.
हालांकि इस ईसाई मिशनरी ने कोच्चि में प्रदर्शन कर रहे ननों को प्रदर्शन में शामिल नहीं होने का आदेश दिया है.
केरल कैथोलिक चर्च सुधार आंदोलन के जार्ज जोसेफ ने बीबीसी को बताया, "मिशनरीज के सामने ऐसा कहने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं है, क्योंकि ये समूह सीधे तौर पर जालंधर बिशप के अधीन आता है जिसके प्रमुख बिशप मुलक्कल ही हैं."
जोसेफ़ ने इससे पहले केरल हाइकोर्ट में नन की याचिका भी दाख़िल कराई थी. इससे पहले वह अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास गई थी क्योंकि चर्च प्रबंधकों ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की थी.
जब जोसेफ की याचिका पर कोर्ट में 10 अगस्त को सुनवाई हुई तब पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि उसे नन के आरोपों के पक्ष में कुछ सबूत मिले हैं, जिसके बाद कोर्ट ने पुलिस को इस मामले में सावधानी से काम करने को कहा था.
हालांकि तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो जोसेफ़ ने हाइकोर्ट में दूसरी याचिका दाख़िल की, जो डिविजन बेंच के सामने रखी गई. कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के लिए 13 सितंबर की तारीख़ तय की है.
जोसेफ़ ने अदालत से चार अहम बिंदुओं पर ध्यान देने का अनुरोध किया है. जोसेफ़ ने कहा, "बिशप को तत्काल हिरासत में लिया जाए. जांच की निगरानी हाइकोर्ट के अधीन हो. बिशप मुलक्कल के विदेश जाने पर रोक लगाई जाए और यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं की सुरक्षा के लिए प्रोटोकॉल बनाया जाए."से ननों के प्रदर्शन की ख़ास बात ये है कि उसे समाज के दूसरे तबकों का भी साथ मिल रहा है.
इनके समर्थन में प्रदर्शन में शामिल केरल हाइकोर्ट के सेवानिवृत जज कमाल पाशा ने बीबीसी से कहा, "पुसिस को अब तक अभियुक्त को हिरासत में लेना चाहिए. हाइकोर्ट के सामने जांच अधिकारी ने जो एफिडेविट दाख़िल किया है उसके मुताबिक बिशप को हिरासत में लेने के लिए पर्याप्त सबूत है."
"मुझे लगता है कि इस मामले में नन का साथ देना चाहिए. वे लोग अभियुक्त को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उसने अभी तक अग्रिम ज़मानत की याचिका भी दाख़िल नहीं की है."
ऐसे में एक बड़ा सवाल ये है कि चर्च का स्टैंड क्या है?
सायरो मालाबार चर्च के पूर्व प्रवक्ता फ़ाद पॉल थेलाकाठ ने बताया है, "शर्मनाक चुप्पी है, नन की शिकायत को कई महीने बीत चुके हैं. उन्होंने पुलिस के पास भी शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई."
फ़ादर थेलाकाठ ने बताया, "कोई फ़ैसला नहीं सुना रहा है कि कौन सही है और कौन ग़लत. लेकिन चुप्पी पीड़ादायक है."

Saturday, September 1, 2018

英国核废料清理成本失控

英国西北岸的塞拉菲德核废料处理场其费用恐高达700亿英镑,处理场高层被指责领导不力。

本周,英国核废料处理费用不断飙升一事遭到强烈抨击,塞拉菲尔德核电站的高管被国会议员责问为什么他们未能控制核废料清理费用。该核电站是世界上第一个完整规模的核电站,贮存了大量放射性核废料。

英国的民用核电工业的历史可以追溯到 20世纪50年代。到2010年为止,英国已经积存了约五百万立方米放射性核废料, 其中塞拉菲尔德就是世界上规模最大的民用钚废料存储地。

要安全处理这些废料耗资不菲,且颇具争议。 目前, 全世界只有芬兰制定了废料处理的长期计划 。

在英国,由于核废料处理费用急剧增加和严重的管理失误,负责管理和运营塞拉菲尔德核电站的公司受到了严厉指责。国会议员们批评英国核能除役署(  )不顾这些指责,将该公司管理塞拉菲尔德核电站场址合同延期五年 。

国会议员玛格丽特·霍奇——审议核工业的国会议员委员会主席先前曾表示: “巨量的核废料被允许存放于塞拉菲尔德核废料处理场。几十年来,历届政府都未能认真对待这一重要问题,直到现在,除役核电站的总寿命成本已达670.50亿英镑,而且没有任何迹象显示这个数字什么时候能停止上升 。 ”

“目前还不清楚要花多长时间、要花掉纳税人多少钱来处理塞拉菲尔德的有害放射性核废料, ”她补充道。

尽管核电的成本在不断攀升,最近,英国政府却批准了一座新建核电站的建设规划,这是1995年以来的第一次 。该核电站预计耗资140亿英镑,将由中国和法国做资金和技术支持。 这一核电项目遭到了一些人士的批评,他们认为国家支持的方向应该是可再生能源,而不是补贴新一代核电。苦,河南、江苏、安徽等地“癌症村”频现与严重的水污染有关。
图集由108张地图组成,中国疾病预防控制中心的研究人员通过对现有监测数据进行再分析,描述了淮河流域过去30年来水环境变化和当地人群死因。图集标示了污染严重的区域以及消化道肿瘤高发地区。
曾任中国疾病预防控制中心副主任的研究负责人杨功焕教授表示,“图集发布的研究结果围绕污染范围和新发癌症的高发范围两个问题。这两个范围的契合,进一步加强我们认为水污染与癌症相关的证据。”
淮河作为中国东部位于黄河和长江之间的一条大型河流,流域面积27.47万平方公里,泽被苏鲁豫皖四省,也是中国重要的商品粮基地。20世纪80年代起,以农副产品为原料的食品、造纸、皮革等高污染行业,密集出现在淮河两岸。
中国公众对于“癌症村”的印象,即始于淮河沿岸。2004年至2005年,淮河流域癌症高发现象引发中国媒体的广泛关注。时任中国疾病预防控制中心副主任的杨功焕,受命带队赴淮河流域进行调查。2005年夏天,调查启动。
“癌症村”现象最初引发舆论关注时,就有村民和媒体怀疑其与当地河水污染有关。在世界范围内,虽有日本“水俣病”等环境公害病的先例,但淮河流域癌症高发与环境污染之间的必然性联系,在医学上一直没有得到确定性的证实。
今年早些时候,环保部发布了《化学品环境风险防控“十二五”规划》,指出化学品污染防治形势十分严峻,个别地区甚至出现“癌症村”等严重的社会问题。为此,政府采取了包括清洁饮用水等系列措施。
2005年3月,国务院审议通过了《 年农村饮水安全应急工程规划》。安徽、河南等地开始解决安全饮水问题。2005年3月31日,河南省政府下发《关于解决淮河海河流域污染较重地区农村饮水安全问题规划方案的通知》,在全省800个村庄启动安全饮水工程。
2013年9月,《新世纪》周刊记者走访并记录了最早进入人们视野的“癌症村”——黄孟营村,村医王世文对《新世纪》说,村里疾病下降了很多。2004年之前,他的诊所一天要接诊胃肠病人二三十个,到2013年时,一天也治不过三五个。
但杨功焕告诉媒体,“考虑到环境污染健康效应滞后的特点,可以预计在未来十年里,淮河流域水质指标出现高污染频度的中西部平原、中东部平原和南四湖流域地区,依然面临严峻的肿瘤防控形势。”
杨功焕指出,虽然癌症与污染的关联已经得到证实,但在法庭上举证癌症与某一具体污染源的因果关系并非易事。
同时,杨功焕还对中外对话表示:“从病因学的角度,藻毒素、多环芳烃对癌症的影响早就得到了证实。但淮河地区的污染类别多,有皮革、造纸等等产业,环境中的污染物质都是混合的而不是单一的,很可能是各种致病因素同时发生作用。现在一般使用的COD、氨氮等指标,不能对应到某个特定的污染物质。这是在一个历史过程中形成的多重混合污染,也是淮河流域的困扰所在。”
日本水俣病事件后围绕甲基汞污染进行的公益诉讼,历经20多年,先发现污染范围,再在人体中找出特异疾病种类,与环境中的特定污染物进行对应。“确实很不容易。”杨功焕表示。